राजकीय महिला महाविद्यालय, गुलजारबाग, पटना- 7
परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत सत्य है। सकारात्मक और सृजनात्मक परिवर्तन हमेशा जीवन को एक नई दिशा देते है।
सौभाग्य की बात है की राजकीय महिला महाविद्यालय, गुलजारबाग, पटना- 7 का अपने भवन में स्थायी स्थानांतरण हो गया। अपने सृजन के 48 बर्षो के बाद अब महाविद्यालय अपने भवन में संचालित हो रहा है।
इस शुभ अवसर के लिए मैं सहयोग के लिए शिक्षा विभाग का ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ जिनके विशेष प्रयत्न से हम अपनी छात्राओं को अपना भवन दे पाए। उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है की छात्राओं इस अवसर को अपनी उन्नति में अवश्य बदलेगी। मैं अपनी सभी छात्राओं के उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामना देती हूँ।
एक परिचय :
मैं अपने महाविद्यालय के गौरवपूर्ण इतिहास एवं प्रगतिशील वर्तमान से आपका परिचय कराना चाहती हूँ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्त्री-शिक्षा का प्रसार करने के लिए सरकार महिला महाविद्यालय की स्थापना के निर्णयोपरान्त सन् 1973 राजकीय महिला महाविद्यालय, गुजारबाग की स्थापना की गई।
स्थापना के पाँच माह बाद नवम्बर 1973 ई0 को शिक्षा विभाग द्वारा विधिवत् उर्दू, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, प्राणि विज्ञान, इतिहास, अंग्रेजी, बांग्ला, दर्शनशास्त्र, वनस्पति विज्ञान एवं भौतिकी विभाग में व्याख्याताओं की नियुक्ति हुई। महाविद्यालय में छात्राओं की संख्या बढ़ने निरंतर बढ़ने लगी और अन्य विषयों की पढ़ाई की आवश्यकता महसूस होने लगी। स्त्री-शिक्षा के प्रति सचेष्ट सरकार ने इसी क्रम में 1974 में रसायनशास्त्र, मनोविज्ञान एवं दर्शनशास्त्र में भी व्याख्याताओं की नियुक्ति कराई गई। जिन विषयों में व्याख्याताओं की नियुक्ति नहीं हुई थी उनमें वैकल्पिक व्यवस्था कर पढ़ाई शुरू की गई कर्मठ प्राचार्या श्रीमती हुस्नआरा रिजवी के कुशल नेतृत्व में तत्कालीन व्याख्याताएँ, कर्मचारीगण महाविद्यालय के सर्वांगीण विकास के लिए सतत् प्रयत्नशील रहे।
फरवरी 1975 में श्रीमती रिजवी के सेवा निवृत होने पर श्रीमती शांति उपाध्याय, उप-शिक्षा निदेशक ने लगभग एक माह तक अपने मूल कार्य के अतिरिक्त महाविद्यालय की प्राचार्या का कार्यभार संभाला। तत्पश्चात् विभागीय आदेश बी0एन0आर0 ट्रेनिंग कॉलेज की तत्कालीन प्राचार्या श्रीमती विद्यावती माथुर ने महाविद्यालय प्राचार्या का अतिरिक्त कार्यभार ग्रहण किया। साथ ही वर्ष 1975 हिन्दी विभाग में 1976 ई0 में गृहविज्ञान व अंग्रेजी विभाग में व्याख्याताओं की नियुक्ति हुई।
25 मई, 1976 को महाविद्यालय की पूर्णकालिक प्राचार्या के रूप में बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा अनुशंसित डॉ. (श्रीमती) रिताम्भरी देवी ने पदभार ग्रहण किया। इनके कुशल, सुनियोजित एवं दक्ष नेतृत्व में महाविद्यालय का विकास हुआ।
अप्रैल 1981 में कला संकाय के प्रत्येक विषय में एक-एक व्याख्याता की नियुक्ति शिक्षा विभाग द्वारा की गई। तथा तीन नये विषय क्रमशः समाजशास्त्र, संस्कृत एवं संगीत की पढ़ाई भी प्रारंभ हुई। सन् 1988 में त्रि-वर्षिय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू होने के साथ-साथ कला के विषयों में तथा वनस्पति विज्ञान, प्रणि विज्ञान एवं गणित में प्रतिष्ठा की पढ़ाई शुरू हो गई। सन् 1989 में यहाँ भूगोल विषय में स्नातक स्तर की पढ़ाई शुरू हो गई।
महाविद्यालय को प्रगति तथा स्थायित्व के आलोक में तत्कालीन प्राचार्या डॉ. (श्रीमती) रिताम्भरी देवी के अथक प्रयास से सन 1983 जनवरी में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली द्वारा अनुबन्ध प्राप्त हुआ और फलस्वरूप महाविद्यालय को आयोग द्वारा यथोचित अनुदान मिलने लगा।
24 फरवरी 1995 को प्राचार्या डॉ. (श्रीमती) रिताम्भरी देवी के विशेष निदेशक (माध्यमिक शिक्षा) बनने के बाद विभागीय निर्देश से महाविद्यालय की हिन्दी की व्याख्याता डॉ. (श्रीमती) ललितांशुमयी ने प्राचार्या का पदभार ग्रहण किया। 1998 फरवरी माह में कला, विज्ञान एवं वाणिज्य संकाय में व्याख्याताओं की नियुक्ति बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा की गई। साथ ही इसी वर्ष भूगोल से प्रतिष्ठा की पढ़ाई भी शुरू हो गई।
सन् 1998 महाविद्यालय के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। नवम्बर 1998 में धूम-धाम से रजत जयंती समारोह का आयोजन हुआ जिसमें तत्कालीन महामहिम राज्यपाल, श्री सुन्दर सिंह भंडारी मुख्य अतिथि थे। 01-11-2004 से महाविद्यालय की प्राचार्या के रूप में डॉ. पूर्णिमा प्रसाद ने प्रभार ग्रहण किया। इनके कार्यकाल में महाविद्यालय प्रगति के प्रशस्त पथ पर निरंतर बढ़ता रहा। इन्होने महाविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता को और निखारने के साथ ही महाविद्यालय की पत्रिका ‘‘प्रज्ञा‘‘ का नियमित प्रकाशन भी शुरू किया। इन्होंने ही महाविद्यालय का मोनोग्राम भी बनाया।
शिक्षा विभाग द्वारा महाविद्यालय को 6 कंप्यूटर सेट छात्राओं को कंप्यूटर सीखने के लिए 2007 में उपलब्ध कराया गया था और इसके साथ ही एक नए युग का शुरुआत महाविद्यालय में हो गई।
महाविद्यालय में 1:08:2009 को डॉ. सीता रोहतगी ने प्रभारी प्राचार्य का पदभार ग्रहण किया। आपने छात्राओं के लिए "अभिभावक-शिक्षक बैठक" की एक नई शुरुआत की जिससे शिक्षकों को अपने छात्राओं को और करीब से जाने का मौका मिला। इसी क्रम में 2010 में शिक्षा विभाग द्वारा बायोमेट्रिक उपस्थिति का शुभारम्भ किया गया, जिसका पहला केंद्र हमारा महाविद्यालय ही था। तत्कालीन शिक्षा मंत्री द्वारा बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम एवम कंप्यूटर लैब का उदघाटन दिनांक 18:05:2010 को किया गया। साथ ही कई ऐड-ऑन-कोर्स एवं बीसीए कोर्स को महाविद्यालय में शुरु किया गया। उपचारात्मक कोचिंग भी शुरु किया गया।
महाविद्यालय में 01.06.2011 से डॉ. विजयालक्ष्मी सिन्हा ने प्रभारी प्राचार्य़ा का पदभार ग्रहण किया तथा 31.07.2016 तक प्रभारी प्राचार्य़ा के रूप में कार्यरत थी। आपके नेतृत्व ने महाविद्यालय को एक विशिष्टता प्रदान की। "नैक ग्रेड बी" आपके कुशल नेतृत्व में ही महाविद्यालय को प्राप्त हुआ। साथ ही तीन राष्ट्रीय संगोष्ठी क्रमशः भूगोल, हिंदी और गृह विज्ञान विभाग द्वारा सफलतापूर्वक करवाया गया।
महाविद्यालय में 01:08:2016 से डॉ. बिधू रानी सहाय सिंह ने प्रभारी प्राचार्य़ा का पदभार ग्रहण किया और दिनांक 31.01.2021 को सेवानिवृत्त हुई।